अन्तः करण

आईने में भी देखने से डर लगता है
कहीं वो गम न दिख जाए जो मेरे मन में है
सामने से आकार कोई न कह दे की ज़रा अपने बाल हटाना माथे से.
इन आँखों में उसे दर्द न दिखा जाये
मेरा साया तो पहले ही अपने कालेपन पर बदमान था
आज ये दिल भी न बदनाम हो जाये



आईने में देखते हुए डर लगता है
किसी ने कुछ नहीं कहा, किसी ने कुछ नहीं किया
फिर भी ये दिल आज बेजुबान हो गया.

अपनी आवाज़ को सुनने में भी आज डर लगता है.

किसलिए है इतना भार इस सीने में,
किसलिए चुभ रही है साँसे
शायद किसी के दर्द को उतार लिया है सीने में.

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